गुरुवार, 30 जुलाई 2015

गौरैया का घोसला...



मैंने तुमसे कई बार कहा
गौरैया के पंखों से
घोसला बनाना छोड़ दो
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उस दिन तुम न जाने कहाँ से निकाल लाई मेरा पुराना स्वेटर और  लगी उधेड़ने. ऐसा लगा तुम स्वेटर नहीं मुझे उधेड़ रही हो. इन गुजरे सालों में तुमने मुझे इतना जाना है जितना मै खुद को कई जिंदगियो में भी नहीं जान पाया हूँ.
ये हरा स्वेटर मुझे बहुत पसंद है. तुमने ही तो बुना था. नाप लेते वक़्त जब मैंने पूछा - किसलिए ! Surprise. वो सरप्राइज यही हरा स्वेटर था. इसे तुमने प्यार से बुना था, अब इसकी इक इक परत उधेड़ रही हो.

मै बिलकुल भी समझ नहीं पाया तुम्हे
अस्तित्व में तुम्हारे
तुम तो हो, लेकिन
तुमसे जुदा भी कोई है.
रात की रसोई में
मैंने कई बार
नमक तलाशते देखा है तुम्हे.

उस दिन जब बादल फटे तो लगा की तुम लौट आई हो इक लम्बी यात्रा से. क्या ये सिर्फ संयोग था. गौरैया ने अंडे दिए, तुमने मुझे हरा स्वेटर. इस बार नाप भी तो नहीं लिया.

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                                                चिन्मय 

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