गुरुवार, 24 अगस्त 2023

वो और मैं

एकांत के लिए ही मैं शहर की भाग दौड़ छोड़ इतनी दूर अकेले रहने आया था। महीने भर तो सब ठीक रहा लेकिन पिछले कुछ दिनो से उसने मुझे बहुत परेशान कर रखा था। अगर बाल्कनी में बैठा हूँ तो वो किचन में जाकर सामान फेंकने लगता। चुपचाप बैठा  कुछ सोच रहा हूँ तो ठीक सर के ऊपर बनी सीलिंग में जाकर उछल कूद करने लगता। मानो मुझे चिढ़ाने के लिए नाच रहा हो। ऐसा वो तब तक करता जब तक मैं उठ कर कहीं और चला ना जाता। एक दिन पियानो बजाते समय उसके भीतर घुस गया और कुछ महत्त्वपूर्ण तार काट दिए। पियानो अचानक से बंद हो गया तो मैंने ठीक करने के लिए खोला, तब उसकी इस नीच हरकत का पता चला। लगता है उसे संगीत पसंद नहीं या फिर मेरा पियानो बजाना। क्या वो भी मेरी तरह एकांत में रहना चाहता था!!

लेकिन अगर उसे एकांत चाहिए तो कहीं और जाकर ढूँढे। मेरे घर में मुझे परेशान करके, मेरी शांति भंग करके उसे कभी एकांत नहीं मिलेगा!! 

एक रात वो हमेशा की तरह किचन में उत्पात मचा रहा था। धमाचौकड़ी रोज़ की तुलना में आज ज़्यादा तेज थी। काफ़ी देर  करवट बदलने के बाद भी जब आवाज़ बंद नहीं हुई तो मैं एक चप्पल उठा तेज़ी से किचन में गया और झटके से लाइट जला दी। वो किचन प्लेटफॉर्म पर बैठा बेहद क़ीमती क्रॉकरी सेट तोड़ रहा था, जिसे एक चाइनीज दोस्त ने गिफ़्ट किया था। ये देख मेरा पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया लेकिन उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। वो मुझे देख कर भी अनदेखा करता रहा, जैसे वो नहीं मैं चूहा हूँ। मैंने ग़ुस्से से दांत भींचते हुए चप्पल उसकी ओर फेंकी। शायद उसे इस हमले की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी, क्योंकि आज से पहले मैंने कभी भी उसे मारने की कोशिश नहीं की थी। हवा में उड़ कर आ रही इस मिसाइल रूपी चप्पल से बचने के लिए उसने खिड़की की ओर छलांग लगाई। क़िस्मत अच्छी थी कि उस वक्त खिड़की खुली हुई थी, वो उछल कर सीधा खिड़की के नीचे बनी गमले रखने वाली लोहे की जाली में गिरा। मैंने भी इस ईश्वरीय मौक़े का फ़ायदा उठाया और झट से खिड़की बंद कर दी। अब उसके पास घर में आने का कोई रास्ता नहीं था। मैंने उसे बिना मारे ही घर से बेघर कर दिया था। 

वापस बिस्तर पर आकर मैं कल्पना करने लगा कि अगर उसने बचने के लिए खिड़की पर  उछलकूद की तो चौथी मंज़िल से गिर कर ज़रूर कचूमर बन जाएगा। अगर ढीठ की तरह वहीं बैठा रहा तो सुबह ज़रूर चील कौव्वे हज़म कर जाएँगे।

कमरे में पानी होने के बावजूद रात को तीन बजे पानी पीने किचन में गया और खिड़की के पास जाकर उसकी टोह लेने लगा। यह क्या, वो तो अभी भी काँच के पल्लों में मुँह मारता हुआ अंदर आने की कोशिश कर रहा था। उसकी ढीठता देख हैरान था लेकिन  मज़ा भी आ रहा था। बहुत सताया बच्चू, अब तेरी बारी है। 

डर से कई दिन तक किचन की खिड़की नहीं खोली कि कहीं वो फिर से अंदर ना आ जाए। वो नहीं आया, इसका मतलब चील क़व्वो ने उसे शिकार बना लिया होगा। एक बार फिर मैं शांति से रहने लगा। पियानो बजाने लगा। youtube देख कर उसकी तोड़ी हुई क़ीमती क्रॉकरी जोड़ने लगा।  

एक दिन किचन में कॉफ़ी बनाते वक्त अचानक से पैरों के पास रोएँदार हलचल हुई, मैं घबरा कर उछल पड़ा। देखा तो वो भाग कर फ़्रिज के पीछे छिप गया था। मेरे रोंगटे खड़े हो गए। एकांत में ख़लल डालने वो फिर से वापस आ गया था। एक बार फिर से उसने पहले जैसी हरकतें शुरू कर दी। इस बार उसकी उद्दंडता कुछ ज़्यादा थी, मानो बदला ले रहा हो। उसने वो चप्पल बुरी तरह से कुतर दी, जिस से मैंने उसे मारा था। पियानो के तार इस तरह से काटे कि उनकी मरम्मत ही ना हो पाए। मुझे पता था कि वो क़ीमती क्रॉकरी की तलाश में है इसलिए उसे लोहे के बक्से में बंद करके ताला जड़ दिया। शायद इस से वो और ज़्यादा बौखला गया और इसी बौखलाहट में एक रात सोते समय पैर में काट लिया। हुआ तो कुछ नहीं, ज़रा सा खून निकला बस। लेकिन इस बेगैरत हरकत की वजह से मुझे उस शारीरिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ा, जिसका सबसे ज़्यादा डर था। इंजेक्शन। मुझे टिटनेस ही नहीं रैबीज के भी इंजेक्शन लगे। महीने भर तकलीफ में रहा। इस दौरान वो निडर होकर पूरे घर में मौज करता रहा। आसपास घूम कर चिढ़ाता रहा। उसकी छिछोरी हरकतों से ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा था और एक दिन मैंने उस से पूरी तरह छुटकारा पाने का फ़ैसला कर लिया।

मैं बाज़ार से सबसे ज़हरीली चूहे मारने की दवा या कहें ज़हर ले आया। इतने महीने साथ रह कर मुझे पता चल चुका था कि उसे खाने में क्या पसंद है। मैंने ज़हर को आटे में मिला ज़हरीला हलवा तैयार किया और उसे ऐसी जगह रखा जहां वो आसानी से ना पहुँच पाए। ऐसा जानबूझ कर किया ताकि उसे शक ना हो, वरना वो हलवे के क़रीब भी ना आएगा।

शाम को जब सो कर उठा तो हलवा कटोरी के साथ फ़र्श पर पड़ा था। उसका कहीं भी नामोनिशान नहीं था। फिर भी संतुष्टि के लिए उसे घर में हर जगह ढूँढा। बेड, सोफ़ा, अलमारी, फ़्रिज सब खिसका कर देख लिया लेकिन वो कहीं नहीं था। आख़िर में जब हाथ  धोने बाथरूम गया तो वो पानी भरी बाल्टी के अंदर तड़पता हुआ नज़र आया। शायद ज़हर से हुई छटपटाहट को पानी में शांत करने आया होगा। मुँह से झाग निकल रहा था। आँखे बाहर की ओर आ मुझे घूर रही थी, मानो कह रही हों - कायर। धोखेबाज़। लड़ना ही था तो मर्द की तरह सामने आकर लड़ता। धोखे से छिप कर क्यों वार किया!!

मुझे घूरने के कुछ पल बाद उसकी तड़प शांत हो गई। मानो वो मरने के लिए मेरा ही इंतेज़ार कर रहा था। 

उसके जाने के बाद रह-रह कर उसकी शरारतें याद आने लगी। वो मासूम बच्चे सा नज़र आने लगा। उसे मारने का अफ़सोस होने लगा। मन में एक अजीब सा दुःख पैदा हो गया। जिस शांति के लिए आया था वो ग़ायब होकर पीड़ा में बदल गई। अगर इतने बड़े घर में अकेला रह सकता हूँ तो उसके रहने से क्या आपत्ति!! आखिर उसे जगह कितनी चाहिए!!!  

एक दिन मैंने पालतू जानवरों का व्यापार करने वाले पड़ोसी से कहा - मैं एक जानवर पालना चाहता हूँ। क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?

वो ख़ुश होते हुए बोला - क्यों नहीं। क्यों नहीं। बताइए कौन सा पालतू जानवर पालना चाहते हैं?

मैंने कहा - चूहा।

उसने कहा - चूहा!! चूहा कौन पालता है जी?? आपको शेर, बाघ या तेंदुआ पालना चाहिए। 

मैंने कहा - नहीं। मैं चूहा ही पालना चाहता हूँ।

पड़ोसी ने मोबाइल पर तरह-तरह के विदेशी चूहों के फ़ोटो दिखाए। मैंने कहा - मैं देसी चूहा पालना चाहता हूँ। भूरा वाला। जिसकी बड़ी सी पूँछ में गोले बने होते हैं। 

उसने कहा - उसे पालने की क्या ज़रूरत है। वो तो ऐसे ही आ जाएगा घर।

मैंने कहा - नहीं आ रहा। दो महीने से इंतेज़ार कर रहा हूँ। एक भी नहीं आया।


कुछ दिन बाद पड़ोसी मेरे घर चूहेदानी में क़ैद एक चूहा लेकर आया, और बोला - भाई साब बड़ा उत्पाती है। पूरा घर तहस-नहस कर दिया। बड़ी मुश्किल से पकड़ा है। 

चूहे की तारीफ़ सुन मेरा मन गदगद हो गया। मैंने पड़ोसी से चूहे को आज़ाद करने को कहा। वो हिचकते हुए बोला - अइसे, खुले में!! 

मैंने कहा - हाँ। मैं पशुओं को क़ैद करने का पक्षधर नहीं हूँ। 

उसने हैरानी से मेरी ओर देखा और पिंजरा खोल चूहे को आज़ाद कर दिया। घबराया हुआ चूहा बिजली की  तेज़ी से भागता हुआ किचन में ग़ायब हो गया।  

उसके बाद से कई हफ़्ते गुजर गए और मेरे कान चूहे की धमाचौकड़ी सुनने को तरस गए। ये चूहा घर में आते ही एकदम शांत स्वभाव का हो गया है। ना सामने आता, ना ही उत्पात मचाता, ना कुछ कुतरता, ना तोड़-फोड़ करता। खाने के लिए प्लेट में जो कुछ रखता, बस वही खाकर संतुष्ट रहता। कोई असंतोष नहीं, कोई विद्रोह नहीं। उसका यह व्यवहार मेरे लिए बड़े अचरज का विषय है। अगर किसी को पता चले कि वो ऐसा क्यों कर रहा है तो कृपया मुझे ज़रूर बताएँ।


Painting by: Hieronymus Bosch, “The Garden of Earthly Delights”.

 |© Chinmay Sankrat |