आकल्प
मैं रोज़ आइना देखता हूँ और ख़ुद को साफ करना भूल जाता हूँ। आइना हर रोज़ अपना काम करता है।
मंगलवार, 14 अगस्त 2007
वक्त गुज़रा नहीं अभी वरना…रेत पर पाँव के निशां होते
मेरे आगे नहीं था गर कोइ…मेरे पीछे तो कारवाँ होते
नई पोस्ट
पुराने पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)