मंगलवार, 14 अगस्त 2007


वक्त गुज़रा नहीं अभी वरना…रेत पर पाँव के निशां होते

मेरे आगे नहीं था गर कोइ…मेरे पीछे तो कारवाँ होते

1 टिप्पणी:

Sanjeet Tripathi ने कहा…

था मै जो हिस्सा ए कारवां औ शामिलो गुबार
पर मैं था ही कहां मै तो बिखरा यहां-वहां