
मां ने कल सपना देखा
भीड़ मे कोई अपना देखा
उसकी आँखे डबडबाई
कुछ मोती झरे
फूल बनकर महक उठे
हम न समझे इस खुशबू को
बस रंग याद रहे फूलों के जो धीरे-धीरे और रंगो मे शामिल होकर
एक दिन काले हो गए
हम कालिमा को ही रंग समझाने लगे
औरों को समझाने लगे
सारी दुनिया कालिमा को रंग समझने लगी
एक दिन ज़ोर से हवा चली
एक खुशबू आई
जैसी बचपन मे आती थी
कुछ मोती झरे
आसमान मे देखा
बादलों मे दो आँखे नज़र आई
किसी क्रेटर मे धंसी हुई
मां ने कल सपना देखा
भीड़ मे कोई अपना देखा
रस्ते जाते बियाबान को
नही किसी को थकते देखा
नागफनी कोई बेच रहा था
पर दिलों मे सबके उगते
कुछ नाज़ुक से धागों को
बड़ी दुकान मे सजते देखा
एक थप्पड़ मे तड़प उठा मैं
बाज़ार मे ख़ुद को बिकते देखा
चुप रहना अब सीख लिया
आईने मे जब चेहरा देखा
चिन्मय
१३/०२/08
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