गुरुवार, 7 मई 2020


हमारा मन बहुत चंचल हैहमेशा उड़ाने भरता रहता है कभी भी एक जगह थम कर नहीं बैठता... लॉक डाउन भी इस पर बेअसर हैहम इसे काबू करने की कितनी भी जोर आजमाइश करें ये फिर भी कंट्रोल नहीं होता...सब इससे पीड़ित हैं. इसे ही मनोवैज्ञानिक अपनी भाषा में  सब-कोंसिअस कहते हैं. ये हमेशा इन्द्रियों से संचालित होता है, ये कभी नहीं सोताहर वक़्त सक्रिय रहते हुए चुपचाप अपना काम करता रहता हैयही हमारे प्रत्येक क्रिया कलापऔर जीवन को पूर्णतया नियंत्रित करता हैयह बात आधुनिक मनोविज्ञान के जनक फ्रायडएडलर या युंग ने नहीं बल्कि आज से ढाई हज़ार साल पहले बुद्ध ने कही है. उन्होंने यह भी कहा है की मन ही सभी तरह के दुख, वासना, भोग, भय, आसक्ति, क्रोध, इर्ष्या आदि का संचालक है.

दुनिया जीतना आसान हैसैकड़ों अश्मेध यज्ञ करनाऊंची ऊंची अट्टालिकाएं बना लेनासुख के सारे साधन जुटा लेना... बहुत आसान हैलेकिन मन को जीतना!मन को जीतना बहुत मुश्किल हैबहुत कठिन हैइसे जीते बिना दुनिया की सारी विजय बेमानी हैमानो विजय कभी हुयी नहींकिसी को हराया नहींबाहर जो लड़ा वो कभी युद्ध था ही नहींतो युद्ध कहाँ है?? युद्ध... युद्ध बाहर नहीं अन्दर हैअपना सबसे बड़ा विरोधीसबसे बड़ा दुश्मन मैं स्वयं हूँमुझे स्वयं से लड़ना होगा...स्वयं को जीतना होगा.

तथागत ने पहले स्वयं के मन को जीता और बुद्ध कहलायेफिर संसार को भी इसे जीतने की विधि बताईउन्होंने इसके लिए कभी किसी छल-कपट, चमत्कार, तलवार या कर्म काण्ड का सहारा नहीं लिया. जब पूरी दुनिया हिंसा, दुःख और अज्ञान के अँधेरे में डूबी हुयी किसी रहस्यमयी ईश्वरीय शक्ति की स्तुति में काव्य रच रही थीकर्म काण्ड करते हुए अपनी मुक्ति के लिए प्रार्थना कर रही थी तब वो ईश्वर के अस्तित्व को नकार कर अहम् ब्रम्हास्मि  हो चुके थेइसीलिए बुद्ध मेरे लिए दुनिया के प्रथम वैज्ञानिक हैंवे पहले एस्ट्रो फिजिसिस्टएस्ट्रोनोमरसायकोलोजिस्ट और इस स्रष्टि में घटित हो रहे समस्त क्रियाकलापों के प्रथम वैज्ञानिक द्रष्टा हैं.

वे एक ही समय पर द्रश्य भी है और द्रष्टा भीवे अनुभव भी हैं और चेतना भीवे वर्तमान में घट रही और भविष्य में घटित होने वाली ब्रम्हांड की हर हरकत को उसकी समग्रता में जानते हैंवे संसार को हमारी तरह टुकड़ों में नहीं बल्कि उसकी चेतना और ऊर्जा से देखते हैंवे कण की शक्ति से भली भाँती अवगत हैं इसीलिए उन्होंने स्थूल से सूक्ष्म की और सूक्ष्म से सूक्ष्मतम की यात्रा कीवैज्ञानिक भाषा में कहें तो ये शरीर की किसी कोशिका के न्यूक्लियस की चेतना को जानना हैआधुनिक वैज्ञानिक भी असीम संसाधनों का उपयोग कर दशकों से यही जानने की कोशिश कर रहे हैंअसीमित व्यय के बावजूद भी उनके प्रयोग किसी काम के नहींकिन्तु बुद्ध ने यह सत्य आज से ढाई हजार साल पहले बिना किसी प्रयोगशाला और उपकरणों के जान लिया था और वो इसका प्रचार प्रसार भी पूरे संसार में करने लगे थे.

ध्यान की अतल गहराइयों में जाकर उन्होंने एक अति सूक्ष्म कण यानि एटम के विध्वंशक स्वरुप को देखा तो उसी समय उससे लिपटे भौतिक संसार कोउन्होंने उस एक पल में उसमें मौजूद गॉड पार्टिकल को भी देखा तो उसके चारो ओर चक्कर लगाती एनिमल इंस्टिंक्ट को...उन्होंने उस एक ही पल में अपने शरीर में मौजूद प्रत्येक कोशिका के अन्दर बह रही असीमित ऊर्जा को देखाउन्हें अपना शरीर और आसपास की हर वस्तुपिंड इसी तरह के छोटे छोटे अनंत ऊर्जा कणों से बनी हुई दिखाई दीयह सूक्ष्म कण निरंतर जन्म ले रहे है और उसी अनुपात में मर रहे है. सबकुछ हर क्षण बदल रहा है. हर पिंड, हर शरीर, हर वस्तु, सब बदल रहा है. कुछ भी स्थिर नहीं है. रंगहीन, गंधहीनस्वरहीन... जुगनू की तरह टिमटिमाते ऊर्जा कण धीरे धीरे कम होकर नष्ट हो रहे हैं तो कहीं एक साथ संयोजित होकर नयाआकार रच रहे हैंझील पानी से नहीं ऊर्जा कणों से भरी हैपत्थर ठोस नहीं अधिक घनत्व वाले ऊर्जा कणों का गुच्छा हैपूरा ब्रम्हांड एक दुसरे से इन ऊर्जा कणों से जुड़ा हुआ हैये हर पल जन्म ले रहा है और हर पल मर रहा है. ये हर क्षण नया है, हर क्षण भंगुर है.

बुद्ध ने ध्यान के जरिये मानव मष्तिष्क के लिए अपार संभावनाओ का द्वार खोला हैब्रम्हांड और कण की ऊर्जा कोसम्यक दर्शन में इस प्रकार पिरोया है की मानव मष्तिष्क में कोई नकारात्मक भाव ही उत्पन्न ना होकणों की अनंत ऊर्जा का उपयोग स्रष्टि के कल्याण और जीवधारियों के निर्वाण में ही हो.

अत्याधुनिक सायकोलोजी और सायकोएनलिसिस आज भी बुद्ध के सम्यक दर्शन के आगे औचित्यहीन है फिर भी पश्चिम के वॉर और मिलिट्री सायकोलोजिस्ट ध्यान की विधियों को युद्ध हथियार के रूप में विकसित करने की 
कोशिश  कर रहे हैंइन मूर्खो को इसका जरा भी भान नहीं की ध्यान विकारों और व्याधियों को दूर कर सूक्ष्म चेतना विकसित करता हैब्रम्हांड और श्रष्टि के रहस्यों को खोलता हैव्यक्ति को यूनिवर्सल कोन्सेऔस्नेस से एकाकार करता हैऐसा व्यक्ति फिर कभी मानवता को नुक्सान पहुचने का विचार भी मन में नहीं ला सकता हैध्यानी जरूर मेरी इस बात से सहमत होंगेसूक्ष्म को जानने की यह प्रक्रिया सतत है जो धीरे धीरे अनल हक में रूपांतरित होती है.

पूर्णिमा जितनी निर्मलशीतल और शांत है ठीक वैसा ही बुद्ध का स्वभाव हैक्या यह महज संयोग नहीं  कि पूर्णिमा का उनके जीवन में गहरा प्रभाव रहा और उनके भी जो कालांतर में इस प्रबुद्ध व्यक्ति के सानिध्य में आये और सम्यक द्रष्टि पाकर उन्ही की तरह ही निर्मल, शीतल और शांत हो गये.

आज जब पूरी दुनिया युद्ध और महामारी से पीड़ित है तब बुद्ध की सम्यक द्रष्टि ही सबसे अनुकरणीय है.

सब्ब मंगल भवतु 

                                                                  |© Chinmay Sankrat |