हमारा मन बहुत चंचल है. हमेशा उड़ाने भरता रहता है कभी भी एक जगह थम कर नहीं बैठता... लॉक डाउन भी इस पर बेअसर है. हम इसे काबू करने की कितनी भी जोर आजमाइश करें ये फिर भी कंट्रोल नहीं होता...सब इससे पीड़ित हैं. इसे ही मनोवैज्ञानिक अपनी भाषा में सब-कोंसिअस कहते हैं. ये हमेशा इन्द्रियों से संचालित होता है, ये कभी नहीं सोता, हर वक़्त सक्रिय रहते हुए चुपचाप अपना काम करता रहता है. यही हमारे प्रत्येक क्रिया कलापऔर जीवन को पूर्णतया नियंत्रित करता है. यह बात आधुनिक मनोविज्ञान के जनक फ्रायड, एडलर या युंग ने नहीं बल्कि आज से ढाई हज़ार साल पहले बुद्ध ने कही है. उन्होंने यह भी कहा है की मन ही सभी तरह के दुख, वासना, भोग, भय, आसक्ति, क्रोध, इर्ष्या आदि का संचालक है.
दुनिया जीतना आसान है. सैकड़ों अश्मेध यज्ञ करना, ऊंची ऊंची अट्टालिकाएं बना लेना, सुख के सारे साधन जुटा लेना... बहुत आसान है. लेकिन मन को जीतना!! मन को जीतना बहुत मुश्किल है. बहुत कठिन है. इसे जीते बिना दुनिया की सारी विजय बेमानी है. मानो विजय कभी हुयी नहीं. किसी को हराया नहीं. बाहर जो लड़ा वो कभी युद्ध था ही नहीं. तो युद्ध कहाँ है?? युद्ध... युद्ध बाहर नहीं अन्दर है. अपना सबसे बड़ा विरोधी, सबसे बड़ा दुश्मन मैं स्वयं हूँ. मुझे स्वयं से लड़ना होगा...स्वयं को जीतना होगा.
तथागत ने पहले स्वयं के मन को जीता और बुद्ध कहलाये. फिर संसार को भी इसे जीतने की विधि बताई. उन्होंने इसके लिए कभी किसी छल-कपट, चमत्कार, तलवार या कर्म काण्ड का सहारा नहीं लिया. जब पूरी दुनिया हिंसा, दुःख और अज्ञान के अँधेरे में डूबी हुयी किसी रहस्यमयी ईश्वरीय शक्ति की स्तुति में काव्य रच रही थी. कर्म काण्ड करते हुए अपनी मुक्ति के लिए प्रार्थना कर रही थी तब वो ईश्वर के अस्तित्व को नकार कर अहम् ब्रम्हास्मि हो चुके थे. इसीलिए बुद्ध मेरे लिए दुनिया के प्रथम वैज्ञानिक हैं. वे पहले एस्ट्रो फिजिसिस्ट, एस्ट्रोनोमर, सायकोलोजिस्ट और इस स्रष्टि में घटित हो रहे समस्त क्रियाकलापों के प्रथम वैज्ञानिक द्रष्टा हैं.
वे एक ही समय पर द्रश्य भी है और द्रष्टा भी. वे अनुभव भी हैं और चेतना भी. वे वर्तमान में घट रही और भविष्य में घटित होने वाली ब्रम्हांड की हर हरकत को उसकी समग्रता में जानते हैं. वे संसार को हमारी तरह टुकड़ों में नहीं बल्कि उसकी चेतना और ऊर्जा से देखते हैं. वे कण की शक्ति से भली भाँती अवगत हैं इसीलिए उन्होंने स्थूल से सूक्ष्म की और सूक्ष्म से सूक्ष्मतम की यात्रा की. वैज्ञानिक भाषा में कहें तो ये शरीर की किसी कोशिका के न्यूक्लियस की चेतना को जानना है. आधुनिक वैज्ञानिक भी असीम संसाधनों का उपयोग कर दशकों से यही जानने की कोशिश कर रहे हैं. असीमित व्यय के बावजूद भी उनके प्रयोग किसी काम के नहीं. किन्तु बुद्ध ने यह सत्य आज से ढाई हजार साल पहले बिना किसी प्रयोगशाला और उपकरणों के जान लिया था और वो इसका प्रचार प्रसार भी पूरे संसार में करने लगे थे.
ध्यान की अतल गहराइयों में जाकर उन्होंने एक अति सूक्ष्म कण यानि एटम के विध्वंशक स्वरुप को देखा तो उसी समय उससे लिपटे भौतिक संसार को. उन्होंने उस एक पल में उसमें मौजूद गॉड पार्टिकल को भी देखा तो उसके चारो ओर चक्कर लगाती एनिमल इंस्टिंक्ट को...उन्होंने उस एक ही पल में अपने शरीर में मौजूद प्रत्येक कोशिका के अन्दर बह रही असीमित ऊर्जा को देखा. उन्हें अपना शरीर और आसपास की हर वस्तु, पिंड इसी तरह के छोटे छोटे अनंत ऊर्जा कणों से बनी हुई दिखाई दी. यह सूक्ष्म कण निरंतर जन्म ले रहे है और उसी अनुपात में मर रहे है. सबकुछ हर क्षण बदल रहा है. हर पिंड, हर शरीर, हर वस्तु, सब बदल रहा है. कुछ भी स्थिर नहीं है. रंगहीन, गंधहीन, स्वरहीन... जुगनू की तरह टिमटिमाते ऊर्जा कण धीरे धीरे कम होकर नष्ट हो रहे हैं तो कहीं एक साथ संयोजित होकर नयाआकार रच रहे हैं. झील पानी से नहीं ऊर्जा कणों से भरी है. पत्थर ठोस नहीं अधिक घनत्व वाले ऊर्जा कणों का गुच्छा है. पूरा ब्रम्हांड एक दुसरे से इन ऊर्जा कणों से जुड़ा हुआ है. ये हर पल जन्म ले रहा है और हर पल मर रहा है. ये हर क्षण नया है, हर क्षण भंगुर है.
बुद्ध ने ध्यान के जरिये मानव मष्तिष्क के लिए अपार संभावनाओ का द्वार खोला है. ब्रम्हांड और कण की ऊर्जा कोसम्यक दर्शन में इस प्रकार पिरोया है की मानव मष्तिष्क में कोई नकारात्मक भाव ही उत्पन्न ना हो. कणों की अनंत ऊर्जा का उपयोग स्रष्टि के कल्याण और जीवधारियों के निर्वाण में ही हो.
अत्याधुनिक सायकोलोजी और सायकोएनलिसिस आज भी बुद्ध के सम्यक दर्शन के आगे औचित्यहीन है फिर भी पश्चिम के वॉर और मिलिट्री सायकोलोजिस्ट ध्यान की विधियों को युद्ध हथियार के रूप में विकसित करने की
कोशिश कर रहे हैं. इन मूर्खो को इसका जरा भी भान नहीं की ध्यान विकारों और व्याधियों को दूर कर सूक्ष्म चेतना विकसित करता है. ब्रम्हांड और श्रष्टि के रहस्यों को खोलता है. व्यक्ति को यूनिवर्सल कोन्सेऔस्नेस से एकाकार करता है. ऐसा व्यक्ति फिर कभी मानवता को नुक्सान पहुचने का विचार भी मन में नहीं ला सकता है. ध्यानी जरूर मेरी इस बात से सहमत होंगे. सूक्ष्म को जानने की यह प्रक्रिया सतत है जो धीरे धीरे अनल हक में रूपांतरित होती है.
पूर्णिमा जितनी निर्मल, शीतल और शांत है ठीक वैसा ही बुद्ध का स्वभाव है. क्या यह महज संयोग नहीं कि पूर्णिमा का उनके जीवन में गहरा प्रभाव रहा और उनके भी जो कालांतर में इस प्रबुद्ध व्यक्ति के सानिध्य में आये और सम्यक द्रष्टि पाकर उन्ही की तरह ही निर्मल, शीतल और शांत हो गये.
आज जब पूरी दुनिया युद्ध और महामारी से पीड़ित है तब बुद्ध की सम्यक द्रष्टि ही सबसे अनुकरणीय है.
सब्ब मंगल भवतु
|© Chinmay Sankrat |