शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

मैंने कहा था न तुमसे...


जब तुम
मीठी नींद सो रही हो
मै शब्द लिख रहा हूँ
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मैंने कहा था न तुमसे
एक कविता लिखूंगा
जो तुम्हारी हंसी की तरह बेबाक
कुछ शब्द बिखेर देगी
मेरी डायरी के पन्नों में

शब्द अभी बिखरे नहीं हैं
खिलखिलाहट बिखरने लगी है
मेरे अंतस में

हाँ..!
मैंने कहा तो था
- लिखूंगा

एक कविता में
तुमको समेट पाना
मुमकिन नहीं होगा
तुम अथाह हो
इक क़तरा तक तो पाया नहीं
मैंने तुम्हारा

चमकीले ख्वाब
तुमनें आकाश की चादर में टाँके थे
सोचती थी
सारी ज़िन्दगी इस चादर को ओढ़ सोती रहूंगी
तुम्हे क्या पता था
जिसे तुमने चादर समझा
वो अनंत अंतरिक्ष है
लेकिन
तुम्हारे चमकीले ख्वाब
सदा के लिए महफूज़ हो गए

तुम देख रही हो ना आसमान
देखो
उन झिलमिल सितारों को
पहचानती हो..!
शायद...

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                               चिन्मय

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