बुधवार, 30 मई 2007

गुमनाम सफ़र.....


गुमनाम सफ़र.....

गुमनाम शहर से आया हू
गुमनाम सफ़र को जाओूंगा
बेसुध सी मेरी हस्ती है
गुमनामी मे खो जाओूंगा

दरिया ने किनारे छोड़ दिए
कुछ डूब गये, कुछ पार भए
ह्म नीद मे खोए कुछ ऐसे
ना डूब सके ना पार भए

गुमनाम बसेरा हो मेरा
गुमनाम सी मेरी रंगत हो
रास फकीरी आ जाए
गुमनामी की ही संगत हो

कोई छिपा है आँधियारे मे
दुनिया के कोने-कोने मे
चुपचाप निकल या कर मातम
मेरे बुल्ले शाह के डेरे मे

कौन सी बस का टिकिट करू
गुमनाम शहर को जाना है
खोटे पैसे छोड़ दिए
असली पैसे ले जाना है



chinmay
04/1/07 justju/rose.gif

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