बुधवार, 30 मई 2007


मन को आराम नही......


शायद अब किसी को मुझसे कोई काम नही
फिर भी मन को पल भर भी आराम नही

पत्थरो को चुनने मे ज़िंदगी बीती
किसी खंडहार मे भी मेरा नाम नही

पन्छियो के पर गिनना आदत नही मेरी
यहा हँसते हुए बुत का भी कोई दाम नही

निशिचंत हू वैसे ही जैसे ओस की बूँद
समुंदर होने का मुझे गुमान नही

चटकी क़ब्रों से आता शोर सुनता हूँ रोज़
चौराहे मे गड़ी सूलियों का कोई मुकाम नही

करता हू खंज़र से मेरे आज़ा के टुकड़े
कुत्तो की भूख का कोई अंजाम नही

बदलते दौर मे बदलना है सबको
बदल कर ये ना कहूँगा की मैं इंसान नही

chinmay
28/02/07 justju/rose.gif

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