सोमवार, 25 जनवरी 2016

एक ही बात...


एक ही बात
नीली स्याही से लिखो तो कुछ और
काली से लिखो तो कुछ और 
लाल, हरी, गुलाबी से लिखने पर
चटख जरूर हो जाती है
लेकिन
हर बार एक नए भाव में खिलखिलाती है
एक ही बात
किसी उजले काग़ज में,
डायरी के पन्ने में,
पीले से अख़बार में,
या मुड़े तुड़े टिशु पेपर में भी लिखी जाती है
लेकिन
हर बार एक नयी रंगत लेकर आती है
एक ही विचार को अलग तरह से गुनगुनाती है
एक ही बात
किसी की हथेली में,
धूसर से ब्लैकबोर्ड में,
पुराने किले की दीवार में,
सूख रहे कांक्रीट पर,
या समंदर की रेत पर
लिखे के निशान छोड़ जाती है
हर बार
एक ही बात...
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चिन्मय

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