शनिवार, 29 अगस्त 2015

बेदर्द सही...


बेदर्द सही
खुदगर्ज़ सही
बेपरवाह सही
कमबख्त सही

...एकदम सही कहती हो तुम और मुझे मानने में ऐतराज़ भी नहीं. मेरा ये कुबूलना तुम्हारे ख्याल से बीच का रास्ता है. लेकिन तुम तो जानती हो की मुझे रिश्तों में पैबंद लगाने नहीं आते. भावनाओं का बोझा उठाने में पीठ कांपती है.

तेरी हंसी से मुझे मीठी सी झुरझुरी होती है और ये कई दिनों तक लगातार चलती रहती है. कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है की अरसा हो गया तुम्हे हँसे हुए. मुझे उस मीठी सी झुरझुरी की बहुत जरुरत है...

सैकड़ो सूरज जब साथ चमकते है
तेरी आँखों में सैलाब उमड़ता है...

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              चिन्मय 

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