शनिवार, 3 अप्रैल 2010

जाने के बाद भी...


यहाँ से जाने के बाद भी
छूट गई हो तुम।

मेरे जेहन में बसी तुम्हारी हंसी, ताज़ा है
सुबह कि ओस कि बूँद कि तरह।
जो तुम्हारे जाने के बाद,
इस रेस्तरां के किसी कोने में छुप गई है।

यहीं, मेरे पास बैठी थी तुम,
बिना कुछ बोले भी बोल रही थी तुम,
आँखों से।
यहाँ से जाने के बाद भी
तुम यही हो
मेरे बगल में, मेरी बाँहों में अपना सर छिपाए
ख़ामोशी में तैरती तस्वीर कि तरह
तुम छूट गई हो,
मेरी आँखों में,
मेरी सांसो में,
रेस्तरां के किसी कोने में।

तुम नहीं हो
फिर भी मै यहाँ बैठा
ढूंढ रहा हूँ तुम्हारी हंसी...