शनिवार, 3 अप्रैल 2010

क्योंकि...


क्योंकि
हम नहीं जीते बिना तुकबंदी
क्योंकि
हम नहीं चाहते परिचय अपने स्व से
क्योंकि
अनुभूति केवल मर्म है शब्दों में
क्योंकि
रचना व्यर्थ है कागज़ में
क्योंकि
हम सहज है सुख में
क्योंकि
कुछ बाकी नहीं रहा अभिनय में
क्योंकि
आत्मविमुग्ध है हम
क्योंकि
विमर्श नहीं है इच्छा
क्योंकि
मुक्ति नहीं है प्रवचन
क्योंकि
इतिहास नहीं बिना हत्या
क्योंकि
रेट को ढोना आसान नहीं
क्योंकि
अंगूर खट्टे है
क्योंकि
खिसक रही है जमीन
क्योंकि
शब्द नहीं है मेरे पास
क्योंकि
आत्महत्या अच्छा विचार है
क्योंकि
सूख गई है नदी
क्योंकि
संवेदना गई है मिट
क्योंकि
सत्ता है निरंकुश
क्योंकि
जगह नहीं अब
क्योंकि
अहं ब्रम्हास्मि
क्योंकि...
क्यों॥
क॥
अ..

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