शनिवार, 3 मई 2014


















ऐ दोस्त...
कोई ग़ज़ल हो तो सुनाओ
कभी मेरे लिए भी गुनगुनाओ

उड़ते पंछियों को फिक्र नहीं आसमां की
दोस्त...
मुझे भी ऐसे उड़ने का सलीका सिखाओ

जानता है तू मेरी बेचैनी, उस पार जाने की
दोस्त... दरिया के पार मुझे भी ले जाओ...

मुद्दतों से इंतजार था इस दस्तक का ऐ दोस्त
दहलीज में कब आओगे मुझे भी बताओ...

03/05/14

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