सोमवार, 22 सितंबर 2008

कहना चाहता हु मैं एक कथा


कहना चाहता हु मैं एक कथा

जो चले सदियों
जो भीतर हो सबके
जिसे जानते हो सब
जिसका न हो कोई अंत

कहना चाहता हु मैं एक कथा

जिसका हर चरित्र बनू मै
जिसका हर शब्द बनू मै
जिसकी भाषा हो मेरी
जिसे पढ़े न कोई
पर याद रहे सबको

कहना चाहता हु मैं एक कथा

जिसे मै देख सकू
छू सकू
जिसमे मै रो सकू
हंस सकू
जिससे न हो कोई आहत
पर मिले न किसी को राहत

कहना चाहता हु मैं एक कथा

जो हो पुरखो का आख्यान
जो बने न धार्मिक किताब
पूजे न जिसे कोई
समझे न जिसे कोई
जो बने न जरूरत किसी की

कहना चाहता हु मैं एक कथा

जिसमे न हो कोई स्त्री
न कोई पुरूष
ना ही प्रकृति
न ही जीवन

जो हो शून्य
अनंत जीवन का सन्यास
किसी रेत के डूहे की भांति
हवा के साथ सरसराती
जो हो अनश्वर

कहना चाहता हु मैं एक कथा


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