
खोया था क्या पाने को
चंचल मन के भरमाने को
रेत के कतरे बीन रहा
पुख्ता दीवार बनने को
फूलो का सत सूख गया
होंठ भी है मुरझाने को
गाँव-गाँव में भटका तू क्यों
अपनी धाक ज़माने को
सड़क अभी तक बाकी है
बहुत दूर तक जाने को
कुँआ अभी भी सूखा है
तेरी प्यास बुझाने को
०८/१०/08