गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

कोरला पंडित या पोंगा पंडित

आज आपको एक सत्य कथा सुनाता हूँ। ये कथा है ज़िंदगी को शिद्दत से जीने की, उसके सम्मान की, प्यार की, जिजीविषा की, संघर्ष की॰॰॰ये कथा है एक पंडित की॰॰॰जिसका नाम था कोरला॰॰॰कोरला पंडित॰॰॰ये भारत में नहीं, सात समंदर पार अमेरिका में था॰॰॰अमेरिका में रह कर इस पंडित ने जीवन को एक ऐसी रोचक फंतासी का रूप दिया जो किसी उतार-चढ़ाव भरे सनसनीख़ेज़ स्क्रीनप्ले से कम नहीं है।

अपनी जादुई आँखों से सम्मोहित कर लेने वाला, हमेशा चमकीले भारतीय परिधानो में सजा-धजा रहने वाला, ये शख़्श, ना तो कोई भारतीय राजकुमार था, ना ही कोई जादूगर॰॰॰ये था 50-60 के दशक में अमेरिकी संगीत जगत का एक नामचीन सितारा॰॰॰जिसने पूर्वी और पश्चिमी संगीत परम्पराओं को मिला एक नई शैली विकसित की जिसे "एग्ज़ोटिका" के नाम से जाना गया और इस संगीतकार को "गॉडफ़ादर ऑफ़ एग्ज़ोटिका" के ख़िताब से नवाज़ा गया।


कोरला पंडित!!! शायद ही ये नाम किसी ने सुना हो॰॰॰लेकिन जो 50-60 दशक के अमेरिकन टीवी जैज़ म्यूज़िक से रूबरू हैं॰॰॰वे ज़रूर इस नाम को पहचान गए होंगे। कोरला पंडित की पहचान एक भारतीय मूल के संगीतकार की थी, जिसने टेलिविजन के शुरुआती दौर में बहुत से लोकप्रिय TV शोज़, जैसे कोरला पंडित्स एडवेंचर इन म्यूज़िक, चंदू दि मैजिशियन, टाइम फ़ॉर दि बिनी आदि में संगीत देकर अपनी पहचान बनाई थी। कोरला पंडित्स एडवेंचर इन म्यूज़िक, नामक शो इतना लोकप्रिय था कि ये सप्ताह में पाँच दिन प्राइम टाइम में प्रसारित होता था। शो के दौरान भारतीय परिधान में सजे-धजे पंडित पियानो और ऑर्गन बजाते हुए अपनी गहरी जादुई आँखो से कैमरे में निहारा करते थे। साबू दस्तगीर, एरोल फ़्लिन, कोमेडियन बॉब होप जैसी टीवी की मशहूर हस्तियों के साथ पंडित भी अमेरिकन टीवी की दुनिया का पहला सितारा बने थे।

अध्यात्म में गहरी रुचि के कारण वो प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्री श्री परमहंस योगानंद जी के शिष्य बने। श्री योगानंद जी को उनसे इतना लगाव था कि उन्होने, पंडित के एक रेकर्ड के लिए स्पेशल नोट लिखा था। वहीं पंडित भी उनके अध्यात्मिक शिविरों में अक्सर संगीत बजाया करते थे। श्री योगानंद की अंतिम यात्रा के अवसर पर भी कोरला पंडित ने "एग्ज़ोटिका" बजा कर उन्हें भावभीनी संगीतमय श्रद्धांजली दी थी। पंडित अपनी आध्यात्मिक चर्चाओं के लिए भी जाने जाते थे। वो अक्सर अपने कार्यक्रमों में भारतीय और ज़ेन दर्शन के रहस्यवाद को संगीत से जोड़ कर व्याख्यायित करते थे। बाद में वो आख़िरी बार 1994 में टिम बर्टन की लोकप्रिय फ़िल्म एड वुड में बतौर अभिनेता कोरला पंडित के रूप में ही नज़र आए थे।

लगभग आधी सदी लम्बे संगीत कैरीयर के बाद 2 अक्टूबर सन 1998 को टीवी और जैज़ के इस महान संगीतकार ने 77 साल की उम्र में संसार छोड़ दिया। उनके मरने के कई सालों बाद एक ऐसा राज़ खुला जिसने पूरी दुनिया के साथ उनके नज़दीकी लोगों को भी चौंका दिया। 

कोरला पंडित, जिसे दुनिया एक भारतीय मूल का संगीतकार समझती थी वो दरअसल भारतीय था ही नहीं॰॰॰दूर-दूर तक ना उसका भारत से कोई नाता था, ना ही उसकी रगों में भारतीय खून था॰॰॰उसका कोई रिश्तेदार भी भारतीय नहीं था!! तो फिर कोरला पंडित कौन था?? क्या वो भारतीय संगीतकार होने का नाटक कर रहा एक पोंगा पंडित था!!! 

लगभग आधी सदी तक पूरी दुनिया से अपनी असल पहचान छिपाने वाला ये महान संगीतकार दरअसल जॉन रोलैंड रेड था, जिसका जन्म 16 सितंबर 1921 को सेंट लूइस, मिसोरी के एक अफ्रीकी-अमेरिकी ग़ुलाम परिवार में हुआ था। उसके पिता अफ़्रीकन बैप्टिस्ट चर्च में पादरी और माँ  एंग्लो-अफ्रीकन थी॰॰॰शायद इसी वजह से सात भाई-बहनो के बीच रेड का रंग थोड़ा उजला और बाल सीधे थे। रेड के माता-पिता संगीत में बहुत रुचि रखते थे जिसकी वजह से सभी बच्चे संगीत में निपुण हो गए॰॰॰रेड ख़ास तौर से बूगी-वूगी पियानो बजाने में माहिर था।



ये वो दौर था जब अमेरिका में रंगभेद और नस्लवाद चरम पर था। अमेरिकी समाज में नीग्रो अफ़्रीकंस की स्थिति किसी काक्रोच की तरह थी॰॰॰उन्हें कोई अधिकार नहीं थे॰॰॰ गोरे उनकी परछाई से भी दूर भागते थे। उनकी ना सरकारी संस्थाओं में भागीदारी थी ना सत्ता में॰॰॰उनके स्कूल, चर्च, क़ब्रिस्तान, मोहल्ले सब गोरों से अलग थे। नस्लीय विभेद का ये दर्द नीग्रोज़ के संगीत में स्वप्न की तरह उभरा और जैज़ संगीत एक क्रांति की तरह पूरे समाज में छा गया॰॰॰अब अफ्रीकी अमेरिकन का अपना एक अलग संगीत था॰॰॰जिसमें दंत कथाएँ थी, गोरों के अत्याचार की कहानियाँ थी, शोषण का इतिहास था, ईश्वरीय अनुभव थे, अफ्रीकी धरती की यादें थीं।

जॉन रोलैंड रेड चालीस के दशक में संगीत के क्षेत्र में पहचान बनाने हॉलीवुड पहुँचा॰॰॰लेकिन वहाँ नस्लवाद इस कदर हावी था कि म्यूज़िक यूनीयंस में नीग्रोज़ की एंट्री बैन थी॰॰॰महीनों गुज़ारने के बाद भी जब रेड को संगीत का काम नहीं मिला तो उसने जुआन रोलैंडो नाम से एक झूठी मेक्सिकन पहचान बना कर काम किया। तभी उसकी मुलाक़ात एक गोरी लड़की, बैरेल जून डेबीसन से हुई, जो एक डिज़्नी आर्टिस्ट थी॰॰॰उन्हें पहली नज़र में प्यार हो गया॰॰॰ यहीं से रेड की ज़िंदगी में वो मोड़ आया जिसके बाद उसकी पहचान हमेशा-हमेशा के लिए बदल गई।

चालीस के दशक में अमेरिकी समाज में अंतरजातीय शादियाँ, ख़ासतौर पर नीग्रो और काकेशियन शादियाँ  वर्जित थी॰॰॰अगर किसी नीग्रो को ऐसा करते हुए पाया जाता तो भीड़ उसे पीट-पीट कर मार डालती। बैरेल जान जोखिम में नहीं डालना चाहती थी॰॰॰साथ ही रेड की हिम्मत भी पस्त हो रही थी, उसका संगीतकार बनने का सपना टूट रहा था॰॰॰हालात ऐसे थे कि जुआन रोलैंडो नामकी झूठी पहचान भी मदद नहीं कर पा रही थी। लेकिन कहते हैं ना कि मुश्किलों से ही तरक़्क़ी का रास्ता निकलता है॰॰॰तो दोनो ने मिलकर इस बार एक नया रास्ता खोजा। चूँकि बैरेल डिज़्नी स्टूडीओ में बतौर स्पेशल इफ़ेक्ट आर्टिस्ट काम करती थी इसलिए उसने जल्द ही मेकअप और कोस्ट्यूम की मदद से रेड को एक नयी रहस्यमयी पहचान दी, ये पहचान थी कोरला पंडित की।

अब जॉन रोलैंड रेड उर्फ़ कोरला पंडित दिल्ली के एक मशहूर हिंदू ब्राह्मण नौकरशाह का बेटा था और उसकी माँ एक फ़्रेंच ओपेरा सिंगर थी। उसने ढाई साल की उम्र से इंग्लैंड में पियानो सीखना शुरू किया और बारह साल की उम्र में अमेरिका आ गया। शिकागो यूनिवर्सिटी में उसने आगे संगीत की पढ़ाई की और ऑर्गन बजाने में महारत हासिल की। 


रेड और बैरेल ने जानबूझ कर भारतीय पहचान का सहारा लिया, क्योंकि उस दौर में अमेरिकी, भारत के बारे में ज़्यादा नहीं जानते थे॰॰॰फिर ब्राह्मण होने से उन्हें नस्लीय कुलीनता भी मिली॰॰॰जिसके कारण जल्द ही हॉलीवुड के दरवाज़े कोरला पंडित के लिए खुल गए। उसका उठना बैठना उस दौर की मशहूर हस्तियों में होने लगा॰॰॰उसने बैरेल से शादी की॰॰॰और बिना किसी डर के सार्वजनिक जगहों पर आने जाने लगा। रेड भले ही संगीत में प्रतिभाशाली था लेकिन बैरेल के बनाए कोस्ट्यूम और मेकअप ने उसका एक अलग ही तरह का परसोना निर्मित किया। ख़ासतौर पर रत्न जड़ित राजसी पगड़ी ने ही उसके व्यक्तित्व को एक रहस्यमयी ओरीएंटल आभामंडल प्रदान किया था।



जॉन रोलैंड रेड ने कोरला पंडित बन जाने के बाद अपने पुराने नीग्रो जीवन को हमेशा-हमेशा के लिए दफ़न कर दिया। उसने नज़दीकी रिश्तेदारों को छोड़कर बाक़ी सभी दोस्तों और परिचितों से सम्बंध खतम कर लिए। उसने हर उस पहचान को मिटा दिया जो उसके पुराने नीग्रो जीवन से जुड़ी थी। जब कभी वो अपनी बहन से मिलता तो रात के अंधेरे में॰॰॰कार्यक्रम के बाद अपने रिश्तेदारों से दूर भागता, उन्हें अनदेखा करता। बैरेल से उसे दो बेटे हुए, उनके लिए भी वो हमेशा कोरला पंडित रहा।



नस्लीय हिंसा और रंगभेद का शिकार ये अमेरिकी व्यक्ति जो भले ही जॉन रोलैंड रेड के नाम से पैदा हुआ  लेकिन मरा उस पहचान के साथ जो उसे उसकी आज़ादी का, इंसानियत का, एक कलाकार होने का एहसास कराती थी। आज भी कब्र पर उसका नाम कोरला पंडित ही दर्ज है।




लेखक  
चिन्मय सांकृत ©

गुरुवार, 24 अगस्त 2023

वो और मैं

एकांत के लिए ही मैं शहर की भाग दौड़ छोड़ इतनी दूर अकेले रहने आया था। महीने भर तो सब ठीक रहा लेकिन पिछले कुछ दिनो से उसने मुझे बहुत परेशान कर रखा था। अगर बाल्कनी में बैठा हूँ तो वो किचन में जाकर सामान फेंकने लगता। चुपचाप बैठा  कुछ सोच रहा हूँ तो ठीक सर के ऊपर बनी सीलिंग में जाकर उछल कूद करने लगता। मानो मुझे चिढ़ाने के लिए नाच रहा हो। ऐसा वो तब तक करता जब तक मैं उठ कर कहीं और चला ना जाता। एक दिन पियानो बजाते समय उसके भीतर घुस गया और कुछ महत्त्वपूर्ण तार काट दिए। पियानो अचानक से बंद हो गया तो मैंने ठीक करने के लिए खोला, तब उसकी इस नीच हरकत का पता चला। लगता है उसे संगीत पसंद नहीं या फिर मेरा पियानो बजाना। क्या वो भी मेरी तरह एकांत में रहना चाहता था!!

लेकिन अगर उसे एकांत चाहिए तो कहीं और जाकर ढूँढे। मेरे घर में मुझे परेशान करके, मेरी शांति भंग करके उसे कभी एकांत नहीं मिलेगा!! 

एक रात वो हमेशा की तरह किचन में उत्पात मचा रहा था। धमाचौकड़ी रोज़ की तुलना में आज ज़्यादा तेज थी। काफ़ी देर  करवट बदलने के बाद भी जब आवाज़ बंद नहीं हुई तो मैं एक चप्पल उठा तेज़ी से किचन में गया और झटके से लाइट जला दी। वो किचन प्लेटफॉर्म पर बैठा बेहद क़ीमती क्रॉकरी सेट तोड़ रहा था, जिसे एक चाइनीज दोस्त ने गिफ़्ट किया था। ये देख मेरा पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया लेकिन उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। वो मुझे देख कर भी अनदेखा करता रहा, जैसे वो नहीं मैं चूहा हूँ। मैंने ग़ुस्से से दांत भींचते हुए चप्पल उसकी ओर फेंकी। शायद उसे इस हमले की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी, क्योंकि आज से पहले मैंने कभी भी उसे मारने की कोशिश नहीं की थी। हवा में उड़ कर आ रही इस मिसाइल रूपी चप्पल से बचने के लिए उसने खिड़की की ओर छलांग लगाई। क़िस्मत अच्छी थी कि उस वक्त खिड़की खुली हुई थी, वो उछल कर सीधा खिड़की के नीचे बनी गमले रखने वाली लोहे की जाली में गिरा। मैंने भी इस ईश्वरीय मौक़े का फ़ायदा उठाया और झट से खिड़की बंद कर दी। अब उसके पास घर में आने का कोई रास्ता नहीं था। मैंने उसे बिना मारे ही घर से बेघर कर दिया था। 

वापस बिस्तर पर आकर मैं कल्पना करने लगा कि अगर उसने बचने के लिए खिड़की पर  उछलकूद की तो चौथी मंज़िल से गिर कर ज़रूर कचूमर बन जाएगा। अगर ढीठ की तरह वहीं बैठा रहा तो सुबह ज़रूर चील कौव्वे हज़म कर जाएँगे।

कमरे में पानी होने के बावजूद रात को तीन बजे पानी पीने किचन में गया और खिड़की के पास जाकर उसकी टोह लेने लगा। यह क्या, वो तो अभी भी काँच के पल्लों में मुँह मारता हुआ अंदर आने की कोशिश कर रहा था। उसकी ढीठता देख हैरान था लेकिन  मज़ा भी आ रहा था। बहुत सताया बच्चू, अब तेरी बारी है। 

डर से कई दिन तक किचन की खिड़की नहीं खोली कि कहीं वो फिर से अंदर ना आ जाए। वो नहीं आया, इसका मतलब चील क़व्वो ने उसे शिकार बना लिया होगा। एक बार फिर मैं शांति से रहने लगा। पियानो बजाने लगा। youtube देख कर उसकी तोड़ी हुई क़ीमती क्रॉकरी जोड़ने लगा।  

एक दिन किचन में कॉफ़ी बनाते वक्त अचानक से पैरों के पास रोएँदार हलचल हुई, मैं घबरा कर उछल पड़ा। देखा तो वो भाग कर फ़्रिज के पीछे छिप गया था। मेरे रोंगटे खड़े हो गए। एकांत में ख़लल डालने वो फिर से वापस आ गया था। एक बार फिर से उसने पहले जैसी हरकतें शुरू कर दी। इस बार उसकी उद्दंडता कुछ ज़्यादा थी, मानो बदला ले रहा हो। उसने वो चप्पल बुरी तरह से कुतर दी, जिस से मैंने उसे मारा था। पियानो के तार इस तरह से काटे कि उनकी मरम्मत ही ना हो पाए। मुझे पता था कि वो क़ीमती क्रॉकरी की तलाश में है इसलिए उसे लोहे के बक्से में बंद करके ताला जड़ दिया। शायद इस से वो और ज़्यादा बौखला गया और इसी बौखलाहट में एक रात सोते समय पैर में काट लिया। हुआ तो कुछ नहीं, ज़रा सा खून निकला बस। लेकिन इस बेगैरत हरकत की वजह से मुझे उस शारीरिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ा, जिसका सबसे ज़्यादा डर था। इंजेक्शन। मुझे टिटनेस ही नहीं रैबीज के भी इंजेक्शन लगे। महीने भर तकलीफ में रहा। इस दौरान वो निडर होकर पूरे घर में मौज करता रहा। आसपास घूम कर चिढ़ाता रहा। उसकी छिछोरी हरकतों से ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा था और एक दिन मैंने उस से पूरी तरह छुटकारा पाने का फ़ैसला कर लिया।

मैं बाज़ार से सबसे ज़हरीली चूहे मारने की दवा या कहें ज़हर ले आया। इतने महीने साथ रह कर मुझे पता चल चुका था कि उसे खाने में क्या पसंद है। मैंने ज़हर को आटे में मिला ज़हरीला हलवा तैयार किया और उसे ऐसी जगह रखा जहां वो आसानी से ना पहुँच पाए। ऐसा जानबूझ कर किया ताकि उसे शक ना हो, वरना वो हलवे के क़रीब भी ना आएगा।

शाम को जब सो कर उठा तो हलवा कटोरी के साथ फ़र्श पर पड़ा था। उसका कहीं भी नामोनिशान नहीं था। फिर भी संतुष्टि के लिए उसे घर में हर जगह ढूँढा। बेड, सोफ़ा, अलमारी, फ़्रिज सब खिसका कर देख लिया लेकिन वो कहीं नहीं था। आख़िर में जब हाथ  धोने बाथरूम गया तो वो पानी भरी बाल्टी के अंदर तड़पता हुआ नज़र आया। शायद ज़हर से हुई छटपटाहट को पानी में शांत करने आया होगा। मुँह से झाग निकल रहा था। आँखे बाहर की ओर आ मुझे घूर रही थी, मानो कह रही हों - कायर। धोखेबाज़। लड़ना ही था तो मर्द की तरह सामने आकर लड़ता। धोखे से छिप कर क्यों वार किया!!

मुझे घूरने के कुछ पल बाद उसकी तड़प शांत हो गई। मानो वो मरने के लिए मेरा ही इंतेज़ार कर रहा था। 

उसके जाने के बाद रह-रह कर उसकी शरारतें याद आने लगी। वो मासूम बच्चे सा नज़र आने लगा। उसे मारने का अफ़सोस होने लगा। मन में एक अजीब सा दुःख पैदा हो गया। जिस शांति के लिए आया था वो ग़ायब होकर पीड़ा में बदल गई। अगर इतने बड़े घर में अकेला रह सकता हूँ तो उसके रहने से क्या आपत्ति!! आखिर उसे जगह कितनी चाहिए!!!  

एक दिन मैंने पालतू जानवरों का व्यापार करने वाले पड़ोसी से कहा - मैं एक जानवर पालना चाहता हूँ। क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?

वो ख़ुश होते हुए बोला - क्यों नहीं। क्यों नहीं। बताइए कौन सा पालतू जानवर पालना चाहते हैं?

मैंने कहा - चूहा।

उसने कहा - चूहा!! चूहा कौन पालता है जी?? आपको शेर, बाघ या तेंदुआ पालना चाहिए। 

मैंने कहा - नहीं। मैं चूहा ही पालना चाहता हूँ।

पड़ोसी ने मोबाइल पर तरह-तरह के विदेशी चूहों के फ़ोटो दिखाए। मैंने कहा - मैं देसी चूहा पालना चाहता हूँ। भूरा वाला। जिसकी बड़ी सी पूँछ में गोले बने होते हैं। 

उसने कहा - उसे पालने की क्या ज़रूरत है। वो तो ऐसे ही आ जाएगा घर।

मैंने कहा - नहीं आ रहा। दो महीने से इंतेज़ार कर रहा हूँ। एक भी नहीं आया।


कुछ दिन बाद पड़ोसी मेरे घर चूहेदानी में क़ैद एक चूहा लेकर आया, और बोला - भाई साब बड़ा उत्पाती है। पूरा घर तहस-नहस कर दिया। बड़ी मुश्किल से पकड़ा है। 

चूहे की तारीफ़ सुन मेरा मन गदगद हो गया। मैंने पड़ोसी से चूहे को आज़ाद करने को कहा। वो हिचकते हुए बोला - अइसे, खुले में!! 

मैंने कहा - हाँ। मैं पशुओं को क़ैद करने का पक्षधर नहीं हूँ। 

उसने हैरानी से मेरी ओर देखा और पिंजरा खोल चूहे को आज़ाद कर दिया। घबराया हुआ चूहा बिजली की  तेज़ी से भागता हुआ किचन में ग़ायब हो गया।  

उसके बाद से कई हफ़्ते गुजर गए और मेरे कान चूहे की धमाचौकड़ी सुनने को तरस गए। ये चूहा घर में आते ही एकदम शांत स्वभाव का हो गया है। ना सामने आता, ना ही उत्पात मचाता, ना कुछ कुतरता, ना तोड़-फोड़ करता। खाने के लिए प्लेट में जो कुछ रखता, बस वही खाकर संतुष्ट रहता। कोई असंतोष नहीं, कोई विद्रोह नहीं। उसका यह व्यवहार मेरे लिए बड़े अचरज का विषय है। अगर किसी को पता चले कि वो ऐसा क्यों कर रहा है तो कृपया मुझे ज़रूर बताएँ।


Painting by: Hieronymus Bosch, “The Garden of Earthly Delights”.

 |© Chinmay Sankrat |